● Welcome ● Shani Dev Ji श्री शनिदेवजी ● Shani DevJi Ki Aarti ● Char Bhuja Tahi Chaje, Gada Hast Pyari I Jai.I ●Ravi Nandan Gaj Vandan, Yam Agraj Deva . ●Kasht na so Nar patte, karte tab Sena I Jai. I ●Tej Apar tumhara, Swami Sha nahi Jave . ●Tum se Vimukh jagat mein, Sukh nahi Pave. ● Namo Namah Ravinandan sab grah Sirtaja. ●Banshidhar yash gave rakhiyo prabhu laja I Jai. I श्री शनिदेवजी की आरती ● जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी ।सूरज के पुत्र प्रभु छाया महतारी ॥ ● जय जय श्री शनिदेव...श्याम अंक वक्र दृष्ट चतुर्भुजा धारी । नीलांबर धार नाथ गज की असवारी ॥ ● जय जय श्री शनिदेव... किरीट मुकुट शीश सहज दिपत है लिलारी ।मुक्तन की माल गले शोभित बलिहारी ॥जय जय श्री शनिदेव...● मोदक मिष्ठान पान चढ़त हैं सुपारी ।लोहा तिल तेल उड़द महिषी अति प्यारी ॥जय जय श्री शनिदेव... ● देव दनुज ॠषि मुनि सुरत नर नारी ।विश्वनाथ धरत ध्यान शरण हैं तुम्हारी ॥जय जय श्री शनिदेव... ● शनिदेव प्रार्थना हे शनिदेव, तेरी महिमा अपरमपार है। मेरी तुमसे यही प्रार्थना है मेरे से कभी भी अन्याय, अत्याचार, दूराचार, पापाचार, व्यभिचार ना हो। दुःख और सुख जीवन का हिस्सा हैं।सुख में अभिमान ना करूँ। दुःख के समय मुझे इतनी शक्ति दो कि मैं उसका सामना कर सकूँ। हे शनिदेव ! मैं तेरी सन्तान हूँ। मुझे एक ऐसी राह दिखा, जहाँ मैं तेरी सच्चे रास्ते की राह सबको दिखा सकूँ। जय शनिदेव। जय शनिदेव। जय शनिदेव। ●

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                                                                        शनिदेव
 शनैश्चर की शरीर-कान्ति इन्द्रनीलमणि के समान है। इनके सिर पर स्वर्ण मुकुट गले में माला तथा शरीर पर नीले रंग के वस्त्र सुशोभित हैं। इनका वर्ण कृष्ण, वाहन गीध तथा रथ लोहे का बना हुआ है। शनि भगवान्‌ सूर्य तथा संज्ञा (प्रजापति की पुत्री) के पुत्र हैं। शनि के अधिदेवता प्रजापति ब्रह्मा और प्रत्यधिदेवता यम हैं। यह एक-एक राशि में तीस-तीस महीने रहते हैं। यह मकर और कुम्भ राशि के स्वामी हैं तथा इनकी महादशा १९ वर्ष की होती है। इनका प्रभाव एक राशि पर ढ़ाई वर्ष और साढ़े साती के रूप में लंबी अवधि तक भोगना पढ़ता है। शनिदेव भगवान शिव के अत्यन्त भगत है।
शनिदेव का रंग काला क्यो हैं, इस बारे में एक कथा प्रचलित है, जब शनिदेव माता के गर्भ में थे, तब शिव भक्तिनी माता ने घोर तपस्या की, धूप-गर्मी की तपन में शनि का रंग काला हो गया। लेकिन मां के इसी तप ने उन्हे आपार शक्ति दी।
शनिदेव की गति अन्य सभी ग्रहों से मंद होने का कारण इनका लंगड़ाकर चलना है। वे लंगड़ाकर क्यों चलते हैं, इसके संबंध में सूर्यतंत्र में एक कथा है - एक बार सूर्य देव का तेज सहन न कर पाने की वजह से संज्ञा देवी ने अपने शरीर से अपने जैसी ही एक प्रतिमूर्ति तैयार की औेर उसका नाम स्वर्णा रखा। उसे आज्ञा दी कि तुम मेरी अनुपस्थिति में मेरी सारी संतानों की देखरेख करते हुए सूर्य देव की सेवा करो और पत्नी सुख भोगो। ये आदेश देकर वह अपने पिता के घर चली गई। स्वर्णा ने भी अपने आप को इस तरह ढ़ाला कि सूर्य देव भी यह रहस्य न जान सके। इस बीच सूर्य देव से स्वर्णा को पांच पुत्र और दो पुत्रियां हुई। स्वर्णा अपने बच्चों पर अधिक और संज्ञा की संतानों पर कम ध्यान देने लगी।


एक दिन संज्ञा के पुत्र शनि को तेज भूख लगी, तो उसने स्वर्णा से भोजन मांगा। तब स्वर्णा ने कहा कि अभी ठहरो, पहले मैं भगवान्‌ का भोग लगा लूं और तुम्हारे छोटे भाई - बहनों को खिला दूं, फिर तुम्हें भोजन दूंगी। यह सुनकर शनि को क्रोध आ गया और उन्होंने माता को मारने के लिए अपना पैर उठाया, तो स्वर्णा ने शनि को श्राप दिया कि तेरा पांव अभी टूट जाए। माता का श्राप सुनकर शनिदेव डरकर अपने पिता के पास गए और सारा किस्सा कह सुनाया। सूर्यदेव तुरन्त समझ गए कि कोई भी माता अपने पुत्र को इस तरह का शाप नही दे सकती। इसीलिए उनके साथ अपनी पत्नी नही कोई और हैं। सूर्य देव ने क्रोध में आकर पूछा कि बताओ तुम कौन हो, सूर्य का तेज देखकर स्वर्णा घबरा गई और सारी सच्चाई उन्हे बता दी। तब सूर्यदेव नें शनि को समझाया कि स्वर्णा तुमारी माता नही हैं, लेकिन मां समान हैं। इसीलिए उनका दिया शाप व्यर्थ तो नही होगा, परन्तु यह इतना कठोर नही होगा कि टांग पूरी तरह से अलग हो जाए। हां, तुम आजीवन एक पाँव से लंगडाकर चलते रहोगे।
शनि देव पर तेल चढाया जाता हैं, इस संबंध में आनंद रामायण में एक कथा का उल्लेख मिलता हैं। जब भगवान की सेना ने सागर सेतु बांध लिया,  तब राक्षस इसे हानि न पहुंचा सकें, उसके लिए पवन सुत हनुमान को उसकी देखभाल की जिम्मेदारी सौपी गई। जब हनुमान जी शाम के समय अपने इष्टदेव राम के ध्यान में मग्न थे, तभी सूर्य पुत्र शनि ने अपना काला कुरूप चेहरा बनाकर क्रोधपूर्ण कहा- हे वानर मैं देवताओ में शक्तिशाली शनि हूँ। सुना हैं, तुम बहुत बलशाली हो। आँखें खोलो और मेरे साथ युद्ध करो, मैं तुमसे युद्ध करना चाहता हूँ। इस पर हनुमान ने विनम्रतापूर्वक कहा- इस समय मैं अपने प्रभु को याद कर रहा हूं। आप मेरी पूजा में विघन मत डालिए। आप मेरे आदरणीय है। कृपा करके आप यहा से चले जाइए। जब शनि देव लड़ने पर उतर आए, तो हनुमान जी ने अपनी पूंछ में लपेटना शुरू कर दिया। फिर उन्हे कसना प्रारंभ कर दिया जोर लगाने पर भी शनि उस बंधन से मुक्त न होकर पीड़ा से व्याकुल होने लगे। हनुमान ने फिर सेतु की परिक्रमा कर शनि के घमंड को तोड़ने के लिए पत्थरो पर पूंछ को झटका दे-दे कर पटकना शुरू कर दिया। इससे शनि का शरीर लहुलुहान हो गया, जिससे उनकी पीड़ा बढ़ती गई। तब शनि देव ने हनुमान जी से प्रार्थना की कि मुझे बधंन मुक्त कर दीजिए। मैं अपने अपराध की सजा पा चुका हूँ, फिर मुझसे ऐसी गलती नही होगी। इस पर हनुमान जी बोले-मैं तुम्हे तभी छोडूंगा, जब तुम मुझे वचन दोगे कि श्री राम के भक्त को कभी परेशान नही करोगे। यदि तुमने ऐसा किया, तो मैं तुम्हें कठोर दंड दूंगा। शनि ने गिड़गिड़ाकर कहा -मैं वचन देता हूं कि कभी भूलकर भी आपके और श्री राम के भक्त की राशि पर नही आऊँगा। आप मुझे छोड़ दें। तभी हनुमान जी ने शनिदेव को छोड़ दिया। फिर हनुमान जी से शनिदेव ने अपने घावो की पीड़ा मिटाने के लिए तेल मांगा। हनुमान जी ने जो तेल दिया, उसे घाव पर लगाते ही शनि देव की पीड़ा मिट गई। उसी दिन से शनिदेव को तेल चढ़ाया जाता हैं, जिससे उनकी पीडा शांत हो जाती हैं और वे प्रसन्न हो जाते हैं।
शनिदेव जी की दृष्टि में जो क्रूरता है, वह इनकी पत्नी के शाप के कारण है। ब्रह्मपुराण में इनकी कथा इस प्रकार आयी है- बचपन से ही शनि देवता भगवान्‌ श्रीकृष्ण के परम भक्त थे। वे श्रीकृष्ण के अनुराग में निमग्न रहा करते थे। वयस्क होने पर इनके पिता ने चित्ररथ की कन्या से इनका विवाह कर दिया। इनकी पत्नी सती-साध्वी और परम तेजस्विनी थी। एक रात वह ऋतु-स्नान करके पुत्र- प्राप्ति की इच्छा से इनके पास पहुँची, पर यह श्रीकृष्ण के ध्यान में निमग्न थे। इन्हें बाह्य संसार की सुधि ही नहीं थी। पत्नी प्रतीक्षा करके थक गयी। उसका ऋतुकाल निष्फल हो गया। इसलिये उसने क्रुद्ध होकर शनिदेव को शाप दे दिया कि आज से जिसे तुम देख लोगे, वह नष्ट हो जायगा। ध्यान टूटने पर शनिदेव ने अपनी पत्नी को मनाया। पत्नी को भी अपनी भूल पर पश्चाताप हुआ, किन्तु शाप के प्रतीकार की शक्ति उसमें न थी, तभी से शनि देवता अपना सिर नीचा करके रहने लगे। क्योंकि यह नहीं चाहते थे कि इनके द्वारा किसी का अनिष्ट हो।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार शनि ग्रह यदि कहीं रोहिणी-शकट भेदन कर दे तो पृथ्वी पर बारह वर्ष घोर दुर्भिक्ष पड़ जाय और प्राणियों का बचना ही कठिन हो जाय। शनि ग्रह जब रोहिणी का भेदन कर बढ़ जाता है, तब यह योग आता है। यह योग महाराज दशरथ के समय में आने वाला था। जब ज्योतिषियों ने महाराज दशरथ से बताया कि यदि शनि का योग आ जायेगा तो प्रजा अन्न-जल के बिना तड़प-तड़प कर मर जायगी। प्रजा को इस कष्ट से बचाने के लिये महाराज दशरथ अपने रथ पर सवार होकर नक्षत्र मण्डल में पहुँचे। पहले तो महाराज दशरथ ने शनि देवता को नित्य की भाँति प्रणाम किया और बाद में क्षत्रिय-धर्म के अनुसार उनसे युद्ध करते हुए उन पर संहारास्त्र का संधान किया। शनि देवता महाराज की कर्तव्यनिष्ठा से परम प्रसन्न हुए और उनसे वर माँगने के लिए कहा। महाराज दशरथ ने वर माँगा कि जब तक सूर्य, नक्षत्र आदि विद्यमान हैं, तब तक आप शकट-भेदन न करें। शनिदेव ने उन्हें वर देकर संतुष्ट कर दिया।
अतः कहा गया है, शनिदेव क्रुर ग्रह नहीं हैं, वो न्यायकर्ता है। व्यक्ति पाप करता रहता है, और जब उस व्यक्ति पर शनि की साढ़ेसाती आती है, तो उसके पापो का हिसाब स्वयं शनिदेव करते है। जब आप लोभ, हवस, गुस्सा, मोह से प्रभावित होकर अन्याय, अत्याचार, दूराचार, अनाचार, पापाचार, व्यभिचार को सहारा लेते है, जब सब से छिप कर कोई पाप करते है, तब भी शनिदेव सब देख रहे होते हैं और समय आने पर आपको दंड भी देते हैं। साढे-साति ही होती है, जो राजा का रंक बना देती है। लेकिन यदि साढे-साती दशा के दौरान भी आप सत्य को नहीं छोड़ेगे,  पुनः, दया और न्याय का सहारा लेगें, सब बहुत ही अच्छे से व्यतीत हो जायेगा।
उपरोक्त के अनुसार :
शनि की अत्यन्त सूक्ष्म दृष्टि है ।
शनि अच्छे कर्मो के फलदाता भी है।
शनि बुर कर्मो का दंड भी देते है।
अतः ठीक ही कहा गया है :
जीवन के अच्छे समय में शनिदेव का गुणगान करो।
आपतकाल में शनिदेव के दर्शन करो।
मुश्किल पीड़ादायक समय में शनिदेव की पूजा करो।
दुखद प्रसंग में भी शनिदेव पर विश्वास करो।
जीवन के हर पल शनिदेव की प्रति कृतज्ञता प्रकट करो।

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